नई दिल्ली। अपने सपनों को पूरा करने को आखिर हमें क्या खोना पड़ता है? मंजीत सिंह चहल, भारत को 18वें एशियाई खेलों में नौवा स्वर्ण पदक जिताने वाले एथलीट अपने फोन की स्क्रीन को हमेशा निहारते रहते हैं। वह फोन पर तस्वीर निहारते हैं, यह तस्वीर उनके बेटे अबीर चहल की है। इस तस्वीर में 5 महीने का बेटा चैन की नींद सो रहा है। मंजीत अपने बेटे के सबसे नजदीक इस फोन के जरिए ही पहुंच सके हैं। मंजीत अभी तक अपने बेटे से नहीं मिल सके हैं। उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिस अपने बेटे को गले लगाने की है, जोकि वह अभी तक नहीं कर पाए हैं।
मंजीत ने जीत के बाद कहा-
"क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कैसा लगेगा अगर एक पिता अपने नौजात बच्चे को नहीं देख पाया हो? मैं बेचैन हूं कि मैं कब उससे मिलूंगा और उसे गोदी में खिला सकूंगा।" मंजीत के बेटे की यह तस्वीर यह याद दिलाती है कि अपने सपनो को पूरा करने को इंसान को किस हद तक त्याग करना पड़ता है। हरियाणा के जिंद जिले के मंजीत ने यह त्याग किया है भारत को 800 मीटर में स्वर्ण पदक जिताने के लिए। 1982 के बाद मंजीत 800 मीटर में स्वर्ण लाने वाले पहले भारतीय एथलीट हैं।
कठिन रहा है मंजीत का सफर-
मंजीत ने 800 मीटर फाइनल के लिए आठवें स्थान पर जगह बनाई थी। उसके बाद उन्होंने अपना पर्सनल बेस्ट समय निकालकर भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। मनजीत ने 1 मिनट 46.15 सेकेंड का समय निकाला जोकि उनका पर्सनल बेस्ट समय है। दो साल पहले मंजीत का करियर खत्म होने को था, इसी 31 मार्च को ONGC ने उनको बताया था कि वह उनके साथ कॉन्ट्रैक्ट आगे नहीं बढ़ाएंगे। ONGC ने उनसे कहा था कि उनका प्रदर्शन अभी तक खास नहीं रहा है और उम्र देखते हुए अब इसमें सुधार की भी गुंजाइश नहीं है। मंजीत ने इस पदक से अपने आप को साबित कर दिया, इससे पहले उनके पास कोई भी अंतर्राष्ट्रीय पदक नहीं था।
इन्होने दिखाया विश्वास-
मंजीत पर उनके घरवालों और सेना के प्रमिख कोच अमरीश कुमार के अलावा किसी ने भरोषा नहीं रखा। मंजीत आर्मी के नहीं हैं इसके बाद भी कुमार ने उनके साथ काम करने का फैसल लिया। मंजीत जब कुमार के पास आये तब उनका समय 1:52:00 ही था, जोकि बहुत ही ख़राब था। कोच ने मंजीत से कमिटमेंट मांगी, उन्होंने कहा कि अगर तुम मुझे अपने दो साल दोगे तो मैं तुम्हे एशियाई खेल में स्वर्ण पदक जीतने लायक बना दूंगा। कुमार ने मंजीत से पूछा क्या वह सब कुछ छोड़ कर उनके साथ ट्रेनिंग करेंगे और मंजीत ने हां कहा। मंजीत, कुमार के साथ ऊटी नेशनल कैंप गए। वह नेशनल कैंप का हिस्सा नहीं थे इस कारण उन्हें वहां रहने के 30,000 रुपए प्रति महीना देने होते थे। मंजीत के पास पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने अपने घर से पैसे लिए। मंजीत और कुमार की मेहनत रंग लाई और देश को एशियाई खेल 2018 में नौवा स्वर्ण पदक मिला।
मंजीत का वादा-
मंजीत ने अब वादा किया है कि वह ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के लिए अपना पूरा जोर लगा देंगे। खैर मंजीत वह तो आसान नहीं होगा लेकिन आपके इस प्रयास से पूरा देश गौरवान्वित है ।
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